Why Shankar is called Mahakaal?

प्रश्न (Guru Tattwa) -शंकर को महाकाल क्यों कहा जाता है ?

उत्तर (Guru Tattwa) - क्योंकि शंकर काल का भी काल है । सृष्टि को अपने में विलीन करते समय वह काल को भी अन्दर समेट लेते हैं, इसलिए उन्हें महाकाल कहा जाता है ।
Knowledge of Jyotirlinga Shiva & their Energy

ज्योतिर्लिंग :

''शिवलिंग उपासना निर्गुण-सगुण की मिश्रित उपासना पद्घति है । ऐसा प्रतीत होता है कि लोग निर्गुण ब्रह्म का लक्ष्य भी सामने रखना चाहते हैं तथा उपासना में भी रुचि रखते हैं, उनके लिए लिंग उपासना का विधान किया गया है । उपासना बिना किसी आधार के संभव नहीं, जिसके लिए ब्रह्म का सगुण होना आवश्यक है । इसमें आकार का आधार मिल जाता है । इससे कम आकार संभव नहीं । प्रायः शिवलिंग (आकाश जैसे) गोल मटोल दिखाई देते हैं । आकाश को भी अनन्त होने के कारण ब्रह्म से ही उपमित किया जाता है । आकाश आकार रहित है, गुण रहित है किन्तु गोलाकार दिखाई देता है । उसी गोलाकार स्वरूप को लेकर, शिवलिंग के रूप में ग्रहण कर लिया गया तथा उपासना आरंभ कर दी गई ।

कुछ शिवलिंग अनघढ एढे-टेढे पत्थर हैं जैसे कि केदारनाथ । बस एक चट्टान उभरी हुई है । उसी के ऊपर मंदिर निर्माण कर दिया गया है, जिस पर श्रद्घालु भक्त, उसे शिव मानकर, शताब्दियों से घी का लेप करते चले आ रहे हैं । अब तक लाखों टन घी का लेप हो चुका होगा । वह भी निराकार की ही साकार पूजा है ।

जब प्रतीक उपासना का आरंभ हुआ तो पहले प्राकृत पदार्थ जैसे सूर्य, चन्द्र, कोई नदी, समुद्र या पर्वत इत्यादि को प्रतीक के रूप में लिया जाता था । धीरे-धीरे पौराणिक युग का प्रवेश हुआ तो मनुष्य निर्मित प्रतिमाओं को प्रतीक रूप में लिया जाने लगा । यह प्रतिमाएं सगुण उपासना का आधार थीं । इन दोनों युगों के बीच का युग था जब लिंग उपासना प्रचलित हुई । उस समय न केवल शिवलिंग की ही उपासना होने लगी थी वरन् भगवती की उपासना के लिए भी पिण्डी (लिंग) का ही प्रयोग किया जाता था । हिमालय में आज भी भगवती के कुछ प्राचीन मंदिर देखने में आए जहां भगवती, पिण्डी के रूप में ही स्थापित है । इस प्रकार इसे वैदिककाल, लिंगकाल तथा पौराणिक (प्रतिमा) काल, तीन भागों में बांटा जा सकता है ।

शिव का अर्थ है कल्याण और जीव का कल्याण समाधि अवस्था की प्राप्ति में ही निहित है, इसीलिए समाधि अवस्था को शिवावस्था भी कहा जाता है ।

प्रश्न (Guru Tattwa) -

भगवान शिव को भांग पीने वाला बताया जाता है, उनके पास भांग पीसने के लिए सिलबट्टा भी दिखाया जाता है, लोग भांग को शिव बूटी भी कहते हैं ।

उत्तर (Guru Tattwa) -

(हंसते हुए) ''भगवान शिव को क्या तुम कोई मानव समझते हो जो किसी प्रकार का कोई नशा करेगा ! शिव के पास सिलबट्टा ही नहीं, एक पत्नी भी दिखाई जाती है तथा उनके पुत्र भी । कैलाश शिखर पर उनका निवास भी दिखाया जाता है तथा उनके पास एक नन्दी भी है जिस पर वह सवारी भी करते हैं किन्तु समाधि अवस्था को जो प्राप्त होता है, वह तो केवल एक होता है, फिर शिव के पास इतना कुछ कहां से आ गया ! सिर पर गंगा भी धारण किए हैं । हाथ में त्रिशूल भी ले रखा है । यह सब बातें मनुष्य को प्रतीकों के माध्यम से समझाने के लिए हैं ।''

''ब्रह्म तथा उसकी शक्ति का प्रतीक शिव-पार्वती हैं । भक्तों को शिव-शक्ति प्राप्त करने के लिए साधन का नशा, भांग का नशा है । साधन सिलबट्टा है । जिस पर मन रगडकर साधनावेश प्राप्त किया जाता है । कैलाश शिखर पर निवास, अध्यात्म की उच्चतम अवस्था है । नन्दी प्राण का प्रतीक है तो गंगाजी पाप नाश का । उलझन तब पैदा होती है जब शिव-शक्ति को प्रतीकात्मक नहीं, मानव समान देव मान लिया जाता है ।''

''बारह ज्योतिर्लिंग हैं । केदारनाथ तथा विश्वनाथ उत्तरप्रदेश में, महाकलेश्वर तथा ओंकारेश्वर मध्यप्रदेश में, घृष्णेश्वर, बैजनाथ, नागनाथ तथा त्र्यम्बकेश्वर और भीमाशंकर महाराष्ट्र में, सोमनाथ गुजरात में, मल्लिकार्जुन आंध्रप्रदेश में तथा रामेश्वरम् तामिलनाडू में । हिमाचल के कांगडा जिले में भी बैजनाथ का एक मंदिर तथा गुजरात में नागनाथ का मंदिर है । उन लोगों का दावा है कि उनका मंदिर ज्योतिर्लिंग है । बिहार में बैजनाथ धाम का भी यही कहना है । हर एक ज्योतिर्लिंग के पीछे पौराणिक कथाएं हैं या तो किसी भक्त पर कोई संकट आया, या किसी ने घोर तप किया तो भगवान प्रकट हो गए तथा फिर ज्योति रूप में वहीं स्थिर हो गए । अब ज्योति तो कहीं दिखती नहीं, हां, शिवलिंग के दर्शन तथा विशाल मंदिर अवश्य है । नेपाल में पशुपतिनाथ, कश्मीर में अमरनाथ तथा विल्व अमृतेश्वर महादेव (गुप्त ज्योतिर्लिंग) (धरमपुरी, जिला-धार मध्यप्रदेश) ज्योतिर्लिंग तो नहीं है पर उनकी मान्यता कम नहीं ।''

प्रश्(Guru Tattwa) - ज्योतिर्लिंग तथा स्वयंभू लिंग में क्या अन्तर है ?
उत्तर (Guru Tattwa) - प्रायः पहले किसी के मन में मंदिर निर्माण की भावना उदय होती है । वह मंदिर बनवाता है, कहीं से शिवलिंग लाकर उसकी स्थापना करता है किन्तु स्वयंभू धरती से स्वयं प्रकट होते हैं तथा उनका मंदिर निर्माण कर, स्थापना की जाती है । भारत में शिव मंदिरों की कोई कमी तो है नहीं । काल-क्रम से मंदिर विलीन भी हो जाते हैं । प्रतिमाएं तथा शिवलिंग भूमि में दब जाते हैं । जब कोई किसी कारण खुदाई करता है तो उसे दबा हुआ शिवलिंग प्राप्त हो जाता है । यही स्वयंभू की Scientific व्याख्या है । ज्योतिर्लिंग के बारे में मैं पहले बतला ही चुका हूं ।

प्रश्न (Guru Tattwa) - क्या शिव साधन तथा शक्ति-साधन भिन्न-भिन्न है ?
उत्तर (Guru Tattwa) - कोई भिन्न नहीं, केवल भाव तथा श्रद्घा का अंतर है । जब शिव तथा शक्ति ही अभिन्न है तो उनका साधन कैसे भिन्न हो सकता है । भिन्नता की कल्पना जीव में इतनी गहरी उतर गई है कि वह प्रत्येक बात में भिन्नता खोजने लगता है । यह ठीक है कि विषय को समझने के लिए, विषय का विश्लेषण करना पडता है । तत्व के अंगों-प्रत्यंगों को पृथक-पृथक जानने का यत्न करना पडता है, किन्तु अन्ततः तत्व एक ही है । जीव, तत्व की चीर-फाड तो कर लेता है, किन्तु फिर अंगों को जोडने की समझ तथा वृत्ति प्रायः नहीं है । शक्ति शिव की है, शिव से शिव में ही शिव के आधार पर प्रकट होती है, शिव से अभिन्न रहते हुए ही क्रियाशील होती है तथा फिर शिव में ही विलीन हो जाती है । यह मैं कई बार कह चुका हूं कि उपासना-आराधना सदैव शक्ति की ही होती है । जब कोई शिव की उपासना करता है तो वह शिव की शक्ति की उपासना कर रहा होता है ।

प्रश्न(Guru Tattwa) - किन्तु कई लोग केवल शक्ति को ही मानते हैं, शिव को नहीं !
Guru Tattwa - यह उनका अपना भाव है, किन्तु आधार के बिना शक्ति संभव ही नहीं । शक्ति है तो उसका आधार भी है । उसी आधार को शिव कहा गया है ।

प्रश्न (Guru Tattwa) -एक बात पूछनी है । तीर्थों की स्थापना इतने दुर्गम स्थानों पर क्यों की गई है ?

उत्तर (Guru Tattw) - तुम्हारी दृष्टि में इस समय केवल हिमालय के तीर्थ ही हैं । तीर्थ कष्ट तथा अपमान सहन करने के उद्देश्य से विकसित किए गए हैं । अपनी शारीरिक तथा मानसिक क्षमता के

अनुसार जो जितना सहन कर सके, वैसी तीर्थ यात्रा चुन सकता है, जिसकी सहनशीलता की क्षमता अधिक है, तो उसे सुगम्य तीर्थों पर जाकर तपने का अवसर प्राप्त ही नहीं होगा । उसके लिए कठिन यात्राएं हैं, किन्तु वृन्दावन, अयोध्या, काशी दक्षिण तथा उडीसा के सुगम्य तीर्थ भी हैं । जिसकी जैसी शारीरिक क्षमता हो, जैसी सहनशीलता हो, वैसी ही यात्रा की जा सकती है । सामान्य यात्री गंगोत्री तक जाते हैं, अधिक उत्साही तथा सहनशीलता गोमुख (मान सरोवर) की यात्रा करते हैं । यात्राओं का दूसरा उद्देश्य Gyan अर्जन करना है, विभिन्न लोगों, संस्कृतियों, प्राकृतिक परिस्थितियों, दृश्यों, भाषाओं तथा रीति-रिवाजों का Gyan । एक प्रभु की सत्ता के विभिन्न स्वरूप । कष्ट तथा अपमान को सहन कर प्रारब्ध को क्षीण करना, अपने मन को संयत करना तीसरा प्रयोजन है ।

प्रश्न (Guru Tattwa) -शंकर को महाकाल क्यों कहा जाता है ?

उत्तर (Guru Tattwa) - क्योंकि शंकर काल का भी काल है । सृष्टि को अपने में विलीन करते समय वह काल को भी अन्दर समेट लेते हैं, इसलिए उन्हें महाकाल कहा जाता है ।
अ-ब्रह्मा, उ-विष्णु, म्-महेश ।

GOD : G- Generator, O- Operator, D- Destroyer.

- जब शिव सृजन का कार्य ब्रह्मा के रूप में करते हैं तो उनकी क्रियाशक्ति - ''महासरस्वती''

- जब पालन का कार्य करते हैं तो उनकी क्रियाशक्ति - ''महालक्ष्मी''

- जब संहार का कार्य करते हैं तो उनकी क्रियाशक्ति - ''महाकाली''

- जब महामृत्युंजय के रूप में कार्य करते हैं तो उनकी क्रियाशक्ति - ''महा बगलामुखी''

- जब शिव संसार के समस्त कार्यों (सृजन, पालन, संहार आदि) में लगे रहते हैं तो परमेश्वरी या महाशक्ति पार्वती होती हैं ।

प्रत्येक मानव को जीव-निर्जीव कल्याण के लिए निम्न मंत्र का जाप नियत समय पर प्रतिदिन करना चाहिए ।

''ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं हिलीम् ऊँ जीव-निर्जीव कल्याणकारी परम्-माँ परमेश्वरी नमो नमः ॥''